हा रोता हु मैं।
क्यों? तुम नहीं रोते दर्द में
या रोने को दर्द की कमज़ोरी मानते हो?
या शायद ख़ुशी को तुम बस
सिर्फ मुस्कुराकर मनाते हो?
तुम्हें तो नमक बहुत पसंद है ना।
फिर आँसुओ को चखना क्यों नहीं चाहते हो?
या रोना मेरी की पहचान मानते हो?
शायद तुम रोने को मेरी कमज़ोरी मानते हो।
चलो माना तुम थोड़े अल्हड़ सही।
मगर रात में चाँद से गुफ़्तगू करते हुए अंधेरे में
मेरे बगैर बार बार क्यों हल्का सा रो जाते हो?
शायद एकांत में रोने को
तुम अपनी कला मानते हो?
या वो छोटे बच्चे के जैसे
यु छुप छुप के नमक की पोटली को
आँखों से चुराना जानते हो?
हा वो ख़ुशी का स्वागत तुम
जब जब मुस्कान से कर देते हो।
हा तुम वही हो जो
फिर तुम्हारी खुश नम आँखों को
वो स्टोर में रखे टुटेफुटे कुछ गुमसुम सामान के जैसे
पलकों के स्टोर में फिर क्यों बंद कर डालते हो?
कभी कमज़ोरी को कला बना लेते हो।
तो कभी कला की कमज़ोरी बन जाते हो।
हा मैं रोता हु
जानता हु पसंद नहीं मैं तुम्हें।
मानता हु मैं तुम नहीं हु
मगर तुममें ही तो हु।
हा मैं तेरा साया ही सही मगर हु तो तुमसे ही।
फिर क्यों तुम मेरे सामने रोना नहीं चाहते हो?
कला ही तो है ये तुम्हारा
मेरे सामने ना रोना भी
तभी तो मेरा यु तुम्हारे सामने रोने को
मेरी कमज़ोरी मानते हो।
शायद हा आज भी तुम मेरे रोने को कमज़ोरी
और खुदके ना रोने को अपनी कला मानते हो।
क्यों? तुम नहीं रोते दर्द में
या रोने को दर्द की कमज़ोरी मानते हो?
या शायद ख़ुशी को तुम बस
सिर्फ मुस्कुराकर मनाते हो?
तुम्हें तो नमक बहुत पसंद है ना।
फिर आँसुओ को चखना क्यों नहीं चाहते हो?
या रोना मेरी की पहचान मानते हो?
शायद तुम रोने को मेरी कमज़ोरी मानते हो।
चलो माना तुम थोड़े अल्हड़ सही।
मगर रात में चाँद से गुफ़्तगू करते हुए अंधेरे में
मेरे बगैर बार बार क्यों हल्का सा रो जाते हो?
शायद एकांत में रोने को
तुम अपनी कला मानते हो?
या वो छोटे बच्चे के जैसे
यु छुप छुप के नमक की पोटली को
आँखों से चुराना जानते हो?
हा वो ख़ुशी का स्वागत तुम
जब जब मुस्कान से कर देते हो।
हा तुम वही हो जो
फिर तुम्हारी खुश नम आँखों को
वो स्टोर में रखे टुटेफुटे कुछ गुमसुम सामान के जैसे
पलकों के स्टोर में फिर क्यों बंद कर डालते हो?
कभी कमज़ोरी को कला बना लेते हो।
तो कभी कला की कमज़ोरी बन जाते हो।
हा मैं रोता हु
जानता हु पसंद नहीं मैं तुम्हें।
मानता हु मैं तुम नहीं हु
मगर तुममें ही तो हु।
हा मैं तेरा साया ही सही मगर हु तो तुमसे ही।
फिर क्यों तुम मेरे सामने रोना नहीं चाहते हो?
कला ही तो है ये तुम्हारा
मेरे सामने ना रोना भी
तभी तो मेरा यु तुम्हारे सामने रोने को
मेरी कमज़ोरी मानते हो।
शायद हा आज भी तुम मेरे रोने को कमज़ोरी
और खुदके ना रोने को अपनी कला मानते हो।
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