बहोत दिनों से
बहोत दिनों से मुझे चन्द कहे अल्फ़ाज़ ने बैचैन कर रखा है...
मुझे सोने नही देतै
मुझे हसने नही देते
मुझे रोने नही देतै
यु लगता है
यु लगता है सांस सीने मै कही ठहरी हुई है
यु लगता है जेसे तेज़ गर्मी मै जरा सी दैर को बारिश बरस के रुक सी गयी हो
घुटन चारो तरफ फैली हुई है
बहोत दिन से मेरी आँखों मै सपनो की कोई डोली नही उतरी
बहोत दिन से खयालो मै दबे पाओ कोई अपना नही आया
बहोत दिन से वो सब जो मेरी शायरी के मौसमो मे रंग भरते थे,
कहि सोये हुए है
मेरे अल्फ़ाज़ भी खोये हुए है
मै उनको ढूंढने
मैं उनको ढूंढने इस जिंदगी के साये मै निकला तो हु लेकिन,
लेकिन मुझे मालूम है
मुझे मालूम है ज़ज़्बे एक बार खो जाये तो फिर वापस नही मिलते
मुझे मालूम है फिर भी एक आस बाकि है
मै उस आस की ऊँगली पकड़ के चल रहा हु
बजाए शबनमी ठंडक मुझे घेरे हुए है
मगर मैं जल रहा हु
मगर मैं जल रहा हु
मैं अब तक चल रहा हु
मैं अब तक चल रहा हु...!!!
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