मेरी हरकते बचकानी थी
जरा सी जो की मनमानी थी
जो उस दिन तेरी तस्वीर थी बनाई
वो हाथ पकड़ के दिखानी थी
पर सबर तो बह गए बारिश में
पता नही क्यू मुझपे रूल गए
हा मुझको ही तो देख ले
तेरे हुस्न के रंग मुझमे ही घुल गए
जाने कितने बरस मैंने सोचा था
तेरी आँखों को उन रातो मे
अब धीरे धीरे होले होले प्यार किया
अल्फाज़ो को इन बातो मे
बेपनाह बेधड़क हो बारिश
जज्बातों की मुलाकातो मे
सारी जन्नत मे घर लैलुं
तेरे हातो को इन हातो मे
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